गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
मदालसा कहती है- बेटा! अब त्याज्य और ग्राह्य वस्तुओंका प्रकरण आरम्भ करती हूँ, सुनो। घी अथवा तेलमें पका हुआ अन्न बहुत देरका बना हुआ अथवा बासी भी हो तो वह भोजन करने योग्य है। गेहूँ, जौ तथा गोरसकी बनी हुई वस्तुएँ तेल-घीमें न बनी हों तो भी वे पूर्ववत् ग्राह्य हैं।*
* भोज्यमन्नं पर्युषितं स्नेहाक्तं चिरसम्भृतम्।
अस्नेहाश्चापि गोधूमयवगोरसविक्रियाः॥
(३५।१-२)
शङ्ख, पत्थर, सोना, चाँदी, रस्सी, कपड़ा, साग, मूल, फल, विदल (बाँसके बने हुए टोकरे आदि), मणि, हीरा, मूंगा, मोती तथा मनुष्योंके शरीरकी शुद्धि जलसे होती है। लोहेके हथियारोंकी शुद्धि पानीसे धोने तथा पत्थर या सानपर रगड़नेसे होती है। जिस पात्रमें तेल या घी रखा गया हो, उसकी सफाई गरम जलसे होती है। सूप, धान्यराशि, मृगचर्म, मूसल, ओखली तथा कपड़ोंके ढेरकी शुद्धि जल छिड़कनेमात्रसे हो जाती है। वल्कल वस्त्र जल और मिट्टीसे शुद्ध होते हैं। तृण, काष्ठ और ओषधियोंकी शुद्धि जल छिड़कनेसे होती है। भेड़के ऊनसे बने कपड़े और केश यदि दोषयुक्त हो गये हों तो उनकी शुद्धि सरसों अथवा तिल की खली और जलसे होती है। इसी प्रकार रूईके बने कपड़े पानी और क्षारसे शुद्ध होते हैं। मिट्टीके बर्तन दुबारा पकानेसे शुद्ध होते हैं। भिक्षामें प्राप्त अन्न, कारीगरका हाथ, बाजारमें बिकनेके लिये आयी हुई शाक आदि वस्तुएँ, स्त्रियोंका मुख, गलीसे आयी हुई वस्तु, जिसके गुण-दोषका ज्ञान न हो-ऐसी वस्तु और सेवकोंकी लायी हुई चीज सदा शुद्ध मानी गयी है। जिसके शिशुने अभी दूध पीना नहीं छोड़ा हो, ऐसी स्त्री तथा दुर्गन्ध और बुदबुदोंसे रहित बहता हुआ जल स्वाभाविक शुद्ध है। समयानुसार अग्निसे तपाने, बुहारने, गायोंके चलने-फिरने, लीपने, जोतने और सींचनेसे भूमिकी शुद्धि होती है। बुहारनेसे और देवताओंकी पूजा करनेसे घर शुद्ध होता है।
जिस पात्रमें बाल या कीड़े पड़े हों, जिसे गायने सूंघ लिया हो तथा जिसमें मक्खियाँ पड़ी हों, उसकी शुद्धि राख और मिट्टीसे मलकर जलद्वारा धोनेसे होती है। ताँबेका बर्तन खटाईसे, राँगा और सीसा राखसे और काँसेके बर्तनोंकी शुद्धि राख और जलसे होती है। जिस पात्रमें कोई अपवित्र वस्तु पड़ गयी हो, उसे मिट्टी और जलसे तबतक धोये, जबतक कि उसकी दुर्गन्ध दूर न हो जाय। इससे वह शुद्ध होता है। पृथ्वीपर प्राकृतिक रूपसे वर्तमान जल, जिससे एक गायकी प्यास बुझ सके, शुद्ध माना गया है। गलीमें पड़ा हुआ वस्त्र वायुके लगनेसे शुद्ध होता है। धूल, अग्नि, घोड़ा, गाय, छाया, किरणें, वायु, जलके छींटे और मक्खी आदि-ये सब अशुद्ध वस्तुके संसर्गमें आनेपर भी शुद्ध ही रहते हैं। बकरे और घोड़ेका मुख शुद्ध माना गया है; किन्तु गायका नहीं। बछड़ेका मुख तथा माताका स्तन भी पवित्र बताया गया है। फल गिरानेमें पक्षीकी चोंच भी शुद्ध मानी गयी है। आसन, शय्या, सवारी, नाव और मार्गके तृण-ये सब बाजार में बिकनेवाली वस्तुओंकी तरह सूर्य और चन्द्रमाकी किरणों तथा वायुके स्पर्शसे शुद्ध होते हैं। गलियोंमें घूमने- फिरने, स्नान करने, छींक आने, पानी पीने, भोजन करने तथा वस्त्र बदलनेपर विधिपूर्वक आचमन करना चाहिये। अस्पृश्य वस्तुओंसे जिनका स्पर्श हो गया हो उनकी, रास्तेके कीचड़ और जलकी तथा ईंटकी बनी हुई वस्तुओंकी वायुके संसर्गसे शुद्धि होती है।
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- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
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- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
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- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य